कविता

जल ही जीवन है

जल है तो कल है,
जल से ही बादल है,
बादल से ही बरसात है,
बरसात से ही अमृत की फुहार है,
अमृत की फुहार से हरितिमा है,
हरीतिमा से ही भोजन है,
भोजन में ही प्राण है,
प्राण से ही जीवन है,
जीवन से ही नव अंकुरण है,
नव अंकुरण से ही संसार है,
संसार में सबका अपना अस्तित्व है,
अस्तित्व से ही धरा पर जीव जन्तु है,
जीव जन्तु से ही प्रकृति में संगीत है,
संगीत है तो बहता निर्मल जल है,
निर्मल जल है तो दैनिक क्रिया कलाप है,
दैनिक क्रिया कलाप है तो जीवन का विस्तार है,
विस्तार ही तो “आनंद” सुख का आधार है,
आधार मजबूत है तो जीवन सुखद है,
वरना दुखों की पीड़ा अपार है,
जल से ही आरंभ भी और अंत भी,
जल ही जीवन है, जल है तो कल है।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु

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