दोहे – जम के बरसो बदरा
जल की पहली बूँद ने,गाया मंगल गीत।
कृषकों की तो बन गई,वर्षा अब मनमीत।।
जमकर बरसो आज तुम,ऐ बदरा मनमीत।
धरती के दिल को अभी,लो तुम प्रियवर जीत।।
बचपन की बारिश सुखद,बेहद तब उल्लास।
खुशबू मिट्टी की भली,सोंधेपन का वास।।।
पहली बारिश जब हुई,हरियाली का दौर।
आसमान के मेघ पर,किया सभी ने गौर।।
खुशी दे रही है वृहद,हमको तो बरसात।
मिट्टी को तो मिल गई,एक नवल सौगात।।
बचपन की यादें घिरीं,मन हो गया अतीत।
नहीं आज परिवेश वह,नहीं आज वे मीत।।
पानी से जीवन मिला,बूँदें हैं वरदान।
करता है यह नीर तो,खेतों का सम्मान।।
नदी भरी,तालाब भी,मौसम है अनुकूल।
दूर हो गए आज तो,गर्मी के सब शूल।।
बारिश से ही गति मिले,पीने को है नीर।
जल की बूँदों ने हरी,आज सभी की पीर।।
— प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे