लघुकथा

संगठन की शक्ति

“यह तो वही जगह है न, जहां हम नाव में सवार होकर डोलते थे! कैसी सूख-साख कर बंजर-सी लग रही है!” गांव में घूमने आए रमेश ने अपने दोस्त जगदीश से पूछा.
“हां यार, सूखना तो था ही! देखते नहीं कितना कचरा भरा पड़ा है! ऊपर से चारों ओर के पेड़ कट गए, बरखा रानी रूठ गई.”
“सुना है हमने जो सूखे से निपटने का हुनर सीखा था, उससे तुम्हारा गांव बाग-बहार हो रहा है!” जगदीश ने उसको चिंतित देखकर कहा.
“यह भी तो मेरा ही गांव है! चलो अभी सब युवाओं को इकट्ठा कर जगाते हैं, अपने हुनर को चमकाते हैं, गांव को हरा-भरा बनाते हैं.”
“हां यार, संगठन की शक्ति को फिर से शक्तिमान जो करना है!”

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244