कविता

जमीर

मानव सभी प्राणियों में
श्रेष्ठ माना गया है,
पर उनका वो हिस्सा
जहां दया होता है,
जहां करुणा पाया जाता है,
जो अच्छे बुरे का अनुभव करता है,
जहां नैतिकता को धरता है,
लाख मुसीबतें आने पर नहीं बिखरता है,
जहां प्राणी मात्र के लिए प्यार होता है,
सोच समझ कर आपा नहीं खोता है,
जहां से सहयोग की भावनाएं निकलती है,
जब मर जाती है,
तब जाति, धर्म,सम्प्रदाय,
ऊंच नीच की भावना,
सिर्फ पाने की कामना,
दूसरों से उच्च होने का घमंड,
नफरत लिए हुए प्रचंड,
चिकनी चुपड़ी बातों से छलने की काया,
लाखों वसूल कर बताए
सब कुछ है मोहमाया,
तब समझिये उसे जिंदा लाश,
अंदर से हो चुका है बदहवाश,
कितनों भी हो वो अमीर,
निश्चित ही मर चुका है उनका जमीर।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554