राजनीति

भारत में शारीरिक श्रम करने में आलसीपन बढ़ा

वैश्विक स्तरपर भारतीयों को बौद्धिक क्षमता का प्रबल धनी माना जाता है, जो हमें आज वैश्विक पटल पर राजनीतिक आर्थिक, व्यापार व्यवस्था सहित अनेको क्षेत्र में दिख भी रहा है, परंतु हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि कोविड-19 के बाद स्थितियों में कुछ बदलाव सा आ गया है, जो कि मैं स्वयं ने भी अपने आसपास के लोगों की दिनचर्या में परिवर्तन, सामाजिक व्यापारिक गतिविधियों मेंपरिवर्तन महसूस कर रहा हूं कि, पहले की अपेक्षा मानवीय जीव को अधिक आलसीपन हो गया है। हालांकि इसके सटीक कारण भारती प्रौद्योगिकी व एआई का विकास भी हो सकता है, क्योंकि अभी महीनो का काम मिनटों में या सैंकडों में हो जाता है, तो फिर क्यों अधिक शारीरिक या मानसिक श्रम करेंगे। बैठे-बैठे तकनीकी, सरकारी रेवड़ियां, सुख सुविधा सब मिल जाता है तो क्यों मेहनत करेंगे! विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्देशित फिजिकल एक्टिविटीज को हम क्यों करेंगे? इस इनएक्टिविटी लाइफस्टाइल के पीछे की वजह यह भी हो सकती है कि वर्किंग प्रोफेशनल्स, काम के लंबे घंटे और ट्रैवलिंग की वजह से भी फिटनेस पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते हैं। आज हम इस फिटनेस की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि कुछ दिन पहले दि लैसेंट ग्लोबल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन जो कि 197 देशों में किया गया है उसमें कहा गया है कि,फिजिकल एक्टिविटी को लेकर भारतीय लोग काफी आलसी है, ऐसा मैं नहीं,बल्कि लैंसेट की रिपोर्ट का दावा है। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 से 2022 के दौरानलगभग 197 देशों पर यह स्टडी की गई थी। 2022 में जहां 38.4प्रतिशत पुरुष, तो वहीं 52.6 प्रतिशत महिलाएं फिजिकली इनएक्टिव थीं। ये चौंकाने वाली रिपोर्ट है। शारीरिक गतिविधि न के बराबर होनाकई गंभीर बीमारियों को दावत देना है।सबसे ज्यादा फिजिकली इनएक्टिव लोग एशिया-प्रशांत रीजन और दक्षिण एशिया में हैं। इसके लिए पर्यावरण, नींद की कमी, काम के पैटर्न जैसी कई चीजों को जिम्मेदार बताया गया है।इनएक्टिव लाइफस्टाइल के पीछे की वजहें,वर्किंग प्रोफेशनल्स काम के लंबे घंटे और ट्रैवलिंग के वजह से फिटनेस पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते। शहर में लगातार होते डेवलपमेंट के चलते घर छोटे होते जा रहे हैं और आसपास भी इतनी जगह ही नहीं, जहां एक्सरसाइज की जा सके। लोगों को मोबाइल, टीवी की ऐसी लत लगचुकी है कि वो इसके आगे फिटनेस को इग्नोर कर देते हैं।स्टडी में कहा गया है कि देश में अपर्याप्त फिजिकली एक्टिविटी जहां साल 2000 में 22 प्रतिशत थी, जो 2010 में 34 प्रतिशत हो गए। स्टडी के अनुसार, अगर यही हाल रहा तो 2030 तक भारत की करीब 60 प्रतिशत आबादी फिजिकली अनफिट हो जाएगी और 15 प्रतिशत सुधार करने का वैश्विक लक्ष्य यानें की ग्लोबल गोल्स सपना बनकर रह जाएगा। स्टडी कहती है,ऐसे लोग एक घंटे भी कसरत नहीं करते हैं। अगर फिट रहना चाहते हैं तो एक्टिव तो रहना होगा। एक तो भाग दौड़ भरी जिंदगी में खुद को एक्टिव और फिट रखना किसी टास्क से कम नहीं है। द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ की रिपोर्ट में सामने आया कि 2022 में भारत के 50 प्रतिशत अडल्ट फिजिकली एक्टिव नहीं थे।पुरुषों के मुकावले भारत की महिलाएं और ज्यादा पीछे हैं। इन 50 प्रतिशत लोगों में 42 प्रतिशत पुरुष और 57 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं।अच्छी सेहत की नजर से डब्लूएचओ ने हर सप्ताह 150 मिनट मीडियम एक्सरसाइज या फिर हर हफ्ते 75 मिनट तेज स्पीड से एक्सरसाइज करने को सही बताया है। कोई इससे कम करता है तो वह सेहत के लिए सही नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है, देश की आधे से ज्यादा आबादी इस गाइडलाइन को पूरा नहीं कर पा रही है। वैश्विक स्तर पर 60 साल या इससे उम्र के लोगों में फिजिकली एक्टिविटी कम हो रही है। चूंकि द लैसेंट ग्लोबल जर्नल स्टडी में कहा गया है कि भारत की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी विश्व स्वास्थ्य संगठन की फिजिकल गाइडलाइंस का पालन नहीं करते, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, दि लैसेंट ग्लोबल जर्नल रिपोर्ट, भारत में शारीरिक श्रम करने में अलसीपन बढ़ा 197 देशों की लिस्ट में भारत का 12 वां स्थान, प्रौद्योगिकी का विकास व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रचलन से कहीं हम फिजिकल अनफिट या आलसीपन की ओर अग्रसर तो नहीं हो रहे हैं? 

साथियों बात अगर हम विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी नए वैश्विक शारीरिक गतिविधि दिशानिर्देशों 18 जुलाई 2023 की करें तो, डब्ल्यूएचओ यह संदेश दे रहा है कि एक मिनट या पांच मिनट की गतिविधि भी कुछ न कुछ करने से बेहतर है,यह शारीरिक गतिविधि पर नवीनतम दिशा-निर्देशों के संदेश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह ब्लॉग अद्यतन दिशा-निर्देशों का अवलोकन करता है और इस बात पर जोर देता है कि क्या कुछ गतिविधि न करने से हमेशा बेहतर है!2010 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य के लिए शारीरिक गतिविधि पर अपनी वैश्विक सिफारिशें जारी कीं, जिसमें बच्चों और किशोरों, वयस्कों और वृद्धों के लिए शारीरिक गतिविधि के अनुशंसित स्तरों को रेखांकित किया गया। एक दशक बाद, फिर शारीरिक गतिविधि और गतिहीन व्यवहार पर अपने अद्यतन दिशानिर्देश जारी किए।दिशा-निर्देशों में स्वास्थ्य लाभ में उल्लेखनीय सुधार और स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने के लिए आवश्यक शारीरिक गतिविधि की मात्रा और प्रकार के लिए साक्ष्य-आधारित सिफारिशें दी गई हैं। दिशा-निर्देश डब्ल्यूएचओ प्रोटोकॉल के अनुसार विकसित किए गए थे, जिसमें पांच वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों, वयस्कों, वृद्धों और, इस अपडेट में नए, गर्भवती और प्रसवोत्तर महिलाओं और पुरानी बीमारियों और विकलांगताओं से पीड़ित लोगों को संबोधित किया गया था। दिशा-निर्देशों केअनुसार 18-64 वर्ष की आयु के वयस्कों को प्रति सप्ताह कम से कम 150 मिनट मध्यम-तीव्रता वाली एरोबिक शारीरिक गतिविधि या 75 मिनट तीव्र-तीव्रता वाली एरोबिक शारीरिक गतिविधि करने का लक्ष्य रखना चाहिए। वैकल्पिक रूप से, मध्यम और तीव्र तीव्रता वाली गतिविधि का संयोजन किया जा सकता है, जब तक कि शारीरिक गतिविधि पर बिताया गया कुल समय अनुशंसित मात्रा से मेल खाता हो। बच्चों और किशोरों के लिए, सप्ताह भर में प्रतिदिन औसतन 60 मिनट मध्यम से तीव्र गतिविधि स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती है।दिशा-निर्देशों में यह भी सुझाव दिया गया है कि वयस्कों को सभी आयु समूहों के लिए सप्ताह में कम से कम दो दिन मांसपेशियों को मजबूत करने वाली गतिविधियों में भाग लेना चाहिए। इन गतिविधियों से पैरों, कूल्हों, पीठ, छाती, पेट, कंधों और बाहों सहित सभी प्रमुख मांसपेशी समूहों पर काम होना चाहिए।उपरोक्त अनुशंसाओं के अलावा, डबल्यूएचओ के दिशा-निर्देश सुझाव देते हैं कि वयस्कों को यथासंभव लंबे समय तक बैठे रहने या लेटने जैसे गतिहीन व्यवहार को कम करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसके बजाय, उन्हें अपनी दिनचर्या में शारीरिक गतिविधि के छोटे-छोटे झोंकेशामिल करने की कोशिश करनी चाहिए, जैसे कि लिफ्ट केबजाय सीढ़ियाँ चढ़ना या लंच ब्रेक के दौरान टहलना। हालाँकि वर्तमान साक्ष्य के साथ सटीक रूप से मात्रा निर्धारित करना मुश्किल है,लेकिन सभी आयु समूहों और क्षमताओं के लिए यह स्पष्ट है कि हमें सप्ताह के दौरान कुल संकेतक समय को कम करना चाहिए।सभी आबादी के लिए, शारीरिक गतिविधि करने और गतिहीन व्यवहार को कम करने के महत्वपूर्ण लाभ संभावित नुकसान या प्रतिकूल घटनाओं से अधिक हैं। जोखिम आम तौर पर कम होते हैं और यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि हर कदम मायने रखता है – यही वह संदेश है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन अपने नवीनतम दिशानिर्देशों में देना चाहता है-इसलिए अपने आराम क्षेत्र में धीरे-धीरे शुरू करना ठीक है, जब तक कि यह अनुशंसित स्तर तक नहीं पहुंच जाता है क्योंकि आत्मविश्वास शारीरिक गतिविधि में सुधार करता है।जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ता है, नवीनतम साक्ष्यों पर विचार करने के लिए दिशा निर्देशों और सिफारिशों को अपडेट किया जाता है। शारीरिक गतिविधि दिशा-निर्देशों का विकास द लैंसेट कमेंट्री ( रेफरी ) से इस तालिका में दिखाया गया है। यह विकास विशिष्ट व्यायाम प्रशिक्षण से अधिक सामान्य सक्रिय जीवन शैली में बदलाव का वर्णन करता है। 

साथियों बात अगर हम वैश्विक शारीरिक श्रम आलसीपन की करें तो रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर लगभग एक तिहाई लोग (31.3 प्रतिशत) शारीरिक श्रम प्राप्त रूप से नहीं करते। रिपोर्ट में पाया गया कि ये आंकड़ा 2010 के मुकाबले और बढ़ गया है। तब दुनिया भर में अपर्याप्त रूप से शारीरिक गतिविधि में संलग्न 26.4 प्रतिशत लोग थे, जो अब पांच प्रतिशत अधिक है।डबल्यूएचओ महानिदेशक ने कहा कि ये निष्कर्ष, कैंसर और हृदय रोग में कमी लाने और शारीरिक गतिविधि में वृद्धि के जरिए मानसिक स्वास्थ्य व कल्याण को बेहतर बनाने के एक खोए हुए अवसर को रेखांकित करते हैं।डबल्यूएचओ के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति पूरे हफ्ते 150 मिनट से भी कम और कोई टीनएजर 60 मिनट से कम फिजिकल एक्टिविटी करता है, तो इसका मतलब वो फिजिकल इनएक्टिव है। डबल्यूएचओ के मुताबिक, वयस्कों को हफ्ते में कम से कम 150 से 300 मिनट की एक्टिविटी जरूर करनी चाहिए। अगर हम बॉडी को हेल्दी बनाए रखने के लिए किसी भी तरह की कोईएक्सरसाइज नहीं करते, तो इससे मोटापा, डायबिटीज, दिल की बीमारियों, कैंसर, स्ट्रोक, डिप्रेशन जैसी कई गंभीर बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ा जाता है। 

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि दि लैसेंट ग्लोबल जर्नल रिपोर्ट भारत में शारीरिक श्रम करने में आलसीपन बढ़ा-197 देशों की लिस्ट में भारत का 12वां स्थान।दि  लैसेंट ग्लोबल जर्नल स्टडी में कहा गया है,भारत की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी डब्लूएचओ फिजिकल फिटनेस गाइडेंस का पालन नहीं करती!प्रौद्योगिकी विकास व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रचलन से,कहीं हम फिजिकल अनफिट या आलसियों की ओर अग्रसर तो नहीं हो रहे हैं।

— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया