हास्य व्यंग्य

खट्टा-मीठा : पुलवा गिरा रे

बिहार में बहार है, पुलों में दरार है, कुछ मत बोलो प्यारे भाई, सुशासन बाबू की सरकार है ! पूरे बिहार में धमाकों से रौनक़ हो गयी है। यहाँ-वहाँ रोज पुल गिरने की खबर आ रही है। मत पूछिये कि कितने पुल गिरे हैं? मत गिनिये कि कितने लोग मरे हैं? लोग गिनती ही भूल गए हैं। बस धमाकों का मज़ा ले रहे हैं। अगला नम्बर किस पुल के गिरने का है इस पर शर्तें लग रही हैं। सट्टा बाज़ार में भी रौनक़ आ गयी है।

भला हो उन ठेकेदारों और इंजीनियरों का जिन्होंने इन दुर्लभ पुलों का निर्माण किया था। उन जनप्रतिनिधियों-नेताओं का भी अभिनन्दन है, जिन्होंने कमीशन लेकर पुलों की पुण्यतिथि तय कर दी थी। वह पुल ही क्या जो अपनी उम्र पूरी कर ले? वह बरसात ही क्या जो सौ-पचास पुलों को गिराये बिना निकल जाये? लोकतंत्र में सब अपना-अपना काम कर रहे हैं।

पहले बम धमाके होते थे, तो पूरे देश में उनकी गूँज सुनाई देती थी। अब बम फूटना तो बन्द है, पर उनकी कमी पुल धमाके पूरी कर रहे हैं। पूरे देश में रौनक़ हो गयी है। संसद में सवाल पूछे जायेंगे, अखबारों में चर्चा होगी। टीवी पर गर्मागरम बहस होगी, जिससे चैनलों की टीआरपी बढ़ेगी। और आपको क्या चाहिए? इसीलिए कह रहा हूँ कि कुछ मत बोलो। बस पुल धमाकों का मज़ा लो।

— बीजू ब्रजवासी
आषाढ़ कृ. १३, सं. २०८१ वि. (४ जुलाई, २०२४)

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