मजबूरी में साथ न आओ
चाह है केवल इतनी मेरी, तुम आगे बढ़ती जाओ।
मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।
अपनी कोई चाह नहीं है।
दिल को दिल की थाह नहीं है।
पीड़ा भी सुख से सह लेते,
पीड़ा देती आह नहीं है।
स्वस्थ रहो, और मस्त रहो, मनमौजी बन जाओ।
मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।
मजबूर तुम्हें, नहीं करेंगे।
हमने किया, हम ही भरेंगे।
प्रेम कभी भी नहीं बाँधता,
खुश रहो, हम सब सह लेंगे।
चाह नहीं, कुछ पाने की, जो चाहो तुम पाओ।
मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।
इच्छा कोई शेष नहीं है।
तुम्हारे लायक वेश नहीं है।
चाहत अपनी पा लो बढ़कर,
हमारे पास कुछ शेष नहीं है।
हमको नहीं कोई शिकायत, जहाँ चाहो वहाँ जाओ।
मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।
पाने की कोई चाह नहीं है।
देने को कुछ खास नहीं है।
स्वस्थ रहो, बस यही कामना,
प्रेम मरा, अहसास नहीं है।
अब हम नहीं रोकेंगे तुमको, जिसको चाहो, जाओ।
मजबूरी में साथ न आओ, कर्म करो, और पाओ।।
— डॉ.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी