गीतिका/ग़ज़ल

मुस्तकिल नही यहां का, कोई मुसाफिर

तुझसे बेहतर यहां शबाब, ढल के चले गये
चाहे अर्श से पूंछ लो, चाहे फर्श से पूंछ लो।

जितनी तेरी नजर में, उतनी नही दुनियां
चाहे चांद देख लो, चाहे सूरज को देख लो

पहले भी बहुत दामन, लहरा चुके यहां
सुनामी में ढूंढ लो, चाहे हवाओं से पूंछ लो

अनगिनत गुरूर यहां, चकना चूर हो चुके
चाहे कब्र झांक लो, चाहे माटी को जांच लो

मुस्तकिल नही यहां का, कोई मुसाफिर
चाहे आज जान लो, चाहे ‘‘राज’’ जान लो

राज कुमार तिवारी ‘‘राज’’
बाराबंकी उ0प्र0

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782