लघुकथा – दूसरी शर्त
महिमा देखने में सुंदर तो थी ही, उसका स्वभाव भी बहुत मधुर था, परंतु दो साल पहले पिताजी की मृत्यु से उसके सारे सपने टूट गए।
आज अपने ही एक रिश्तेदार महिमा की शादी एक दुहाजू से करने की बात कर रहे थे।
“आरती,मंजीत भले ही दो बच्चियों के पिता हैं लेकिन उम्र तैंतीस से अधिक नहीं है। सरकारी नौकरी में हैं और अच्छी कमाई है। लड़के की तरफ से दान दहेज की कोई माँग भी नहीं है, अगर तुम राजी हो तो इसकी सूचना लड़के वालों को दूँ” दीनानाथ ने महिमा की माँ को कहा।
तेईस साल की महिमा घर के अंदर ही दूर से सारी बातें सुन रही थी।
“बस लड़के की दो शर्तें हैं ” दीनानाथ ने कहा
“क्या शर्तें हैं दीनू दा” महिमा की माँ ने अपने ममेरे भैया से जानना चाहा।
“लड़का निरामिष है, महिमा को भी निरामिष भोजन खाना पड़ेगा। और लड़के का कहना है कि पहली पत्नी से दो बच्चे हैं ,इन्हीं दो बच्चों का लालन-पालन करना है,आगे और संतान नहीं चाहिए।”
महिमा से रहा नहीं गया। वह सामने आई और बोली, “मामाजी, ये बातें किसने कही है?”
दीनानाथ महिमा के चेहरे को देख सहम गया और धीरे से कहा, “लड़के ने।”
“दूसरी शर्त मुझे मंजूर नहीं, उन्हें पत्नी की नहीं किसी नौकरानी की जरूरत है!” इतना कह वह भीतर चली गई।
— निर्मल कुमार दे