हर उजाले की यहां पर उम्र दर्ज है
सुबह गुजर गई, दोपहर में आ गये
अब सांझ तेरी ओर बढ़ती आ रही।
न जला तू तेज किरनों से यहां सबको
निशा की ओर जिन्दगी तेरी भी जा रही
पूनम की रात से इतराना नही अच्छा
कुछ दिन ठहर जा अमावस भी आ रही
नाखुदा जिनके नही उनके यहां खुदा
मझधार भी तू देख लहर ऊंची आ रही
हर उजाले की यहां पर उम्र दर्ज है
इस ‘‘राज’’ में भी रात अंधेरी आ रही
राज कुमार तिवारी ‘‘राज’’
बाराबंकी उ0प्र0