कविता – पावस है मन भावन
धरा ने किया पावस के बूंदों से आचमन।
मुस्कुराई प्रकृति,खिलखिला उठा कानन।
महक उठी बगिया,खिल गए सुमन।
नाच उठा मयूरा,मन हुआ प्रसन्न।
गरज उठे बादल, बिजुरी ने किया नर्तन।
पावस की बूंदों ने सींच दिया
घर आँगन।
धरा की बुझी प्यास, जीवों को मिला नवजीवन।
चली ठंडी बयार,तन में हुआ सिहरन।
छेड़े कोई राग मल्हार,छम-छम करे वादन।
कजरी गाए सखियाँ, खिल उठा आनन।
प्रकृति ने दिया है उपहार,जल ही है जीवन।
इठलाती चली है लेकर भीगें पैगाम पगली पवन।
जी लो जी भर के,आया है सुंदर पावस पावन।
— डॉ. शैल चन्द्रा