कविता – बारिश की खुशबू
खिलेंगी धूप तो बादलों से रूबरू होना होगा,
बारिश फिर तेरी,
मोहब्बत नामा का नाम,
दामन पर सजाना होगा।
बेरहम चेहरा आज़,
सुकून पाएंगी।
उम्मीदों पर खरा उतरने में,
कामयाबी नज़र आएंगी।
तड़पती दोपहरी में बहुत तकलीफें,
झेलते हुए,
रंग झुलसाती रहा हूं मैं।
आज़ मीठी सी गुदगुदी है,
उमंग और उत्साह से भरपूर,
रंग में चढ़ गया हूं मैं।
चंचल सोख अदाएं,
तसल्ली देने लगी है।
गर्म हवाएं अब रूखसत हो गई है।
मुरझाए हुए चेहरे पर,
खुशियां समेटने का एक अजब रंग है।
यह हमारे अतीत से,
बिल्कुल विपरीत नर्म और उत्साह से भरपूर ढंग है।
आसमां में हम उम्मीद करते हुए,
खूबसूरत तस्वीरें खोजते हैं।
बारिश की खुशबू को,
अपने दिल में समेटते हुए,
आनन्द और प्रसन्नता से,
झुमते रहें हैं।
हमें अक्सर गर्म हवाएं परेशान करतीं हैं,
बारिश से निकली हुई आवाज में,
दम-खम का नवीन इतिहास ढूंढती है।
— डॉ- अशोक, पटना