ग़ज़ल
दिल का हाल बताऊँ कैसे
उलझन को सुलझाऊँ कैसे
सच कहने की आदी हूँ मैं
झूठी बात बनाऊँ कैसे
आँखें सब कुछ कह देती हैं
दिल का राज़ छिपाऊँ कैसे
कोई कश्ती और न माझी
दरया पार मै जाऊँ कैसे
जीवन है ये ज़ुल्फ नहीं है
इसको मै सुलझाऊँ कैसे
याद दिलाए जो माज़ी की
वो क़िस्सा दोहराऊँ कैसे
राज़े मुहब्बत क्या है नमिता
लफ़्ज़ों में समझाऊँ कैसे
— नमिता राकेश