दोहा गीतिका
माता मेरी शारदा, विमल विशद विश्वास।
कण -कण में उर के बसा,कवि वाणी का दास।।
भाग्य मनुज का जन्म है, कवि होना सौभाग्य,
कवि की वाणी में सदा, वीणापाणि उजास।
क्षण – क्षण करता वंदना, वरदायिनी सुपाद,
सदा समर्पित मातु हित,कवि का सारा श्वास।
शब्दों के शुभ कोष में, जनहित बसे अपार,
शुष्क न हो ये दूब की, हरियाये नित घास।
एक भरोसा एक बल, शब्द अर्थ आधार,
अलंकार नव छंद की , सबल एक ही आस।
जन्म – जन्म मैं माँगता, मिले सदा आशीष,
सफल नित्य कवि धन्य हो,ज्यों आनन पर हास।
‘शुभम्’ चरण वंदन करे,विनत सदा मम शीश,
शक्ति बने संसार की, काव्याकृति अनुप्रास।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’