व्यंग्य – चमत्कारों की वादियाँ बनाम चमत्कारवाद
चमत्कार की वादियों में चमत्कारवादियों की चाँदी है।देश के बाबाओं ने बहुत पहले से कर रखी ये मुनादी है।बड़े -बड़े लोग यहाँ चमत्कार – भक्त हैं।चमत्कारों की माया [मा= नहीं, या=जो ;अर्थात जो नहीं है वही ‘माया’ है।] पर वे बड़े अनुरक्त हैं।इसीलिए तो बाबाओं की मधुमयी कृपा पर आसक्त हैं।बाबाओं के चरण युगल नोटों से सिक्त हैं।
‘बाबागीरी’ एक खास वृहत उद्योग धंधा है।अन्धविश्वासों के पालने में झूल रहे अंधों के लिए रेशमी फंदा है। सबसे बढ़िया बात ये कभी नहीं मंदा है।चमत्कारों का दीवाना हर तीसरा बंदा है।भले वहाँ पर गर्दन पर रंदा है।प्रबुद्ध वर्ग के लिए भले ही काम गंदा है।किसी के नल का पानी अमृत उगलता है,किसी के गाड़ी का टायर में पवित्र धूल की सबलता है।आदमी के चरित्र की ये कैसी चपलता है।
भगवान कृष्ण ने अपनी शैशवावस्था से ही मायावी मयासुरों को ठिकाने लगा दिया।आज वे मायावी साक्षात हरि रूप में साकार हो गए।भेड़ों के पीछे ही भेड़ चला करती है।भले ही वे भेड़ रूपी भेड़िए ही क्यों न हों? यदि पहले से ही पहचान लिए गए होते तो भेड़ें बिदक न जातीं? ठगने के लिए रूप बदलना पड़ता है।अब चाहे वह इंद्र हो या रावण,चंद्रमा हो या शकटासुर ; सबने अपने रूप परिवर्तन के रंग दिखलाए और ईश्वर अवतार राम भी मृगरूपी मारीच असुर की ठगाई में भरमाए!
रँगे हुए बाबाओं की अंतिम गति कृष्ण जन्म भूमि में होने का चलन है।बात केवल घड़े के भरने भर की है।जब तक घड़ा भर नहीं जाता, बाबा अपने वाक-चमत्कार से जन मानस को रिझाता।अच्छे – अच्छों को आदमी की देह से उल्लू बनाता। जब तक वह कृष्ण जन्मभूमि नही पहुँच जाता ,तब तक तिनका भर नहीं पछताता।ऐश-ओ-आराम की जिंदगी बिताता।महलों को सजाता ,विलासिता में रम जाता।माया में लिपटा माया ही बनाता।
अब तो यह बात भी सच लगने लगी है कि ये देश साँप -सपेरों वाला है। कोई कुछ भी करे,किसी की करनी पर कोई नहीं ताला है।भेड़िए भेड़ बने भरमा रहे हैं।परदे के पीछे गुल खिला रहे हैं।नर -संहार के जंगल उगा रहे हैं। चाँद की यात्रा करने वाले देश में ये क्या हो रहा है।देश सो रहा है।अपने लिए आप ही काँटे बो रहा है।अपने आँसुओं से अपने कपोल धो रहा है।
आम जन मानस को लकवा मार गया है।बुद्धि का दिवाला निकल गया है।कोई समझाये तो समझता नहीं।ईश्वर को छोड़कर बहुरूपिये मानुस में ही बुद्धि की शुद्धि हो रही। कोई ठग, कोई डिग्रीधारी भगवान हो गया। उसी के नाम का जयकारा, वही सर्वस्व दे गया।आदमी की कृतघ्नता की पराकाष्ठा है।भेड़ों वाला कुँआ ही उसका रास्ता है।किसी भी बुद्धिमान से उसका कोई नहीं वास्ता है।स्वयं मौत के कुएँ में कूद रहा है,तो दोष भी किसका है ?
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’