सब कहते हैं मुझको घण्टा
सब कहते हैं मुझको घण्टा।
पिट-पिटकर क्या मिलता घण्टा?
जो भी मंदिर में घुस आता,
सबसे पहले पिटता घण्टा।
बहरे हैं क्या देव – देवियाँ,
जो कहते हैं पीटो घण्टा।
जब तक भाव न बजते मन के,
वृथा पीटना जन का घण्टा।
गर्माता मैं पिट – पिट कर ही,
सुनते लोग न मन का घण्टा।
मेरे जीभ – गाल टकराएँ,
स्वर में एक बजे तब घण्टा।
‘शुभम्’ दया हो इस घण्टे पर,
निर्मम हो मत पीटो घण्टा।
— डॉ.भगवत स्वरूप ‘शुभम’