ग़ज़ल
आज क्या पुरहसीन मौसम है
हुस्न भी इस तरह कि हमदम है
एकदम-से बदल गया मौसम
पर जिसे ग़म रहा उसे ग़म है
इक पहेली कि इश्क़ करते क्यों
जब ज़ियादा सज़ा, मज़ा कम है
कौन-सा घाव भर नहीं सकता
प्यार इक रामबाण मरहम है
चाँदनी और आह से बनती
फूल पर यूँ न सुब्ह शबनम है
वो न सच्चा कभी हुआ आशिक़
जो न आशिक़मिज़ाज हरदम है
लग चुके हैं गुमान को झटके
पर सनम पर गुमान क़ायम है
— केशव शरण