कविता – मां की दुआओं से
क्या लिखूं एक ख्याल आया है,
मां की दुआओं का असर है,
सबमें दिखता सुखद अहसास छाया है।
सुख चैन से रहने वाले,
मां की दुआओं से लिपटे हुए रहते हैं।
इस ताकत से,
निकली हुई आवाज से,
मोहब्बत करते हैं।
खंजर या कोई तकलीफें देने वाली बलाएं,
सब मानते हैं कि,
मां की दुआओं का असर अनोखा है।
इस ताकत को,
समझने की ताक़त पैदा करने की हिम्मत होनी चाहिए,
इस कारण इस प्यार को,
सब मानते हैं बिल्कुल सही और,
देखते है मानकर,
इस ताकत को खुशियों का झरोखा है।
तक़दीर बदल जाएंगी,
जब मां की दुआओं से लिपटे हुए हम रहेंगे यहां।
समय-समय पर,
खुशियां समेटने में काफी वक्त लगेगा,
जब हम इस साथ को,
दिल में बसाए हम रखेंगे इस दुनिया में यहां।
मां की दुआओं से,
आसमानी हौसला बढ़ती है।
किस्मत के बन्द दरवाजे,
हमें आगे बढ़ने में,
काफी हद तक गुज़रती है।
यही जिंदगी है,
इस ताकत से मरहूम न हो हम-सब।
यह किस्मत वाले को नसीब होता है,
ज़माने भर के लोगों को,
यह खुशियां कहां मिली है अबतक।
यही जन्नत सी सबसे खूबसूरत उपहार है,
आगे बढ़ने में,
मां की दुआओं की रहतीं दरकार है।
उमंग से लबालब भर कर,
खुशियां देती है।
समय-समय पर अपने दिल से निकली हुई आवाज से,
नवाज़ कर आगे बढ़ने में,
हमेशा उम्मीदों को जिन्दा रखती है।
— डॉ. अशोक, पटना