लघुकथा – संस्कार
बस स्टॉप पर बस रुकी। यात्रियों की भीड़ में एक वृद्ध किसी तरह कंडक्टर की सहायता से चढ़ा। बस चल पड़ी। उसे धक्का लगा और वह लड़खड़ाया। सामने एक खाली देखकर बैठ गया। “ओ दादा! कहाँ बैठे हैं ? ध्यान दीजिये कि वह महिला सीट है,” उसे बैठे देख पीछे से एक नौजवान ने ताना मारा।
“मैं अगले स्टाप पर उतर जाऊँगा,” वृद्ध ने उत्तर दिया। “जब आपसे बस की सवारी नहीं होती तो चढ़ते ही क्यों हैं? देखते नहीं, आपके पीछे महिला कब से खड़ी हैं,” दूसरे ने ठीकरा फोड़ा और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। उनकी बातें सुनकर वृद्ध सीट का हैंडल पकड़कर खड़ा होने लगा। यह देख महिला ने कहा, “दादा! आप आराम से बैठिये। मेरे में पैरों में इतनी शक्ति है कि मैं खड़े-खड़े सफ़र तय कर सकती हूँ।
— डॉ. अनीता पंडा ‘अन्वी’