कविता

समय रिस्ते दोस्ती

बहता दरिया है यह बहता ही रहेगा
समय न रुका है न किसी के लिये रुकेगा।
सब ख़ाक हो जाएगा इसकी नज़र के सामने
कोई नहीं है जो इसके आगे नहीं झुकेगा।

खून के रिश्ते भी अब हो रहे बेमानी
रिश्तों की कदर आज कोई नहीं है करता।
कहीं पैसे की धौंस कहीं रुतबे का कमाल
अकड़ में है रहता किसी से नहीं डरता।

आज दोस्ती कहां ईमान हैं बेचते
घर फूंक कर दूसरे का तमाशा हैं देखते।
मुँह में राम बगल में छुरी है रखते
मौका आने पर खाई में हैं धकेलते।

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र