धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

प्रकृति संरक्षण और संवर्धन का पर्व हरेला!

भारत विभिन्न संस्कृति और सभ्यताओं का देश है। यहां अनेक पर्व और तीज-त्योहार मनाएँ जाते हैं। इन्हीं में से एक हरेला पर्व है, जो उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल में मनाया जाता है। इस पर्व को प्रकृति संरक्षण और संवर्धन का पर्व भी कहा जाता है। हरेला एक कुमाऊँनी शब्द है, जिसका अर्थ हरियाली या हरा होता है।

इस पर्व को उत्तराखंड के लोग साल में तीन बार (चैत्र, आषाढ़ और सावन माह में) मनाते हैं। सावन माह में मनाया जाने वाला हरेला पर्व की अधिक मान्यता है, जबकि चैत्र और आषाढ़ वाला हरेला पर्व कुमाऊं के कुछ-कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। हरेला पर्व की शुरुआत 10 दिन पहले बांस की टपरी में मिट्टी डालकर उसमें सात या पांच प्रकार के अनाज (जौ,  गेहूँ, मक्का, मसूर, सरसों आदि) बौ कर की जाती है। बांस की टपरी में बोए गए अनाज को रोज सुबह-शाम पानी देना होता है। यह पर्व प्रकृति को समर्पित है और इसका मुख्य उद्देश्य प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण को प्रोत्साहित करना है।

हरेला के रूप में बोए गए अनाज को 9वीं दिन की रात्रि को तेल और फल चढ़ाए जाते हैं। इसके अगले दिन यानी 10वें दिन हरेला को काटा जाता है। इसके बाद परिवार के बड़े सदस्य बच्चों और छोटे सदस्यों को हरेला चढ़ाते हैं यानी उनके सिर में हरेला के रूप में बोए गए अनाज की पत्तियां रखते हैं। 

हरेला चढ़ाते समय आशीर्वाद के रूप में कुमाऊँनी भाषा का यह गीत गाया जाता है-

“जी रये, जागि रये, तिष्टिये, पनपिये,
दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये,
हिमाल में ह्यूं छन तक,
गंग ज्यू में पांणि छन तक,
यो दिन और यो मास भेटनैं रइतिहास ये,
अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये,
स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो।”

इस दिन पेड़-पौधे लगाने का प्रचलन है। इसलिए लोग अपने घरों के आस-पास फलों और फूलों के पौधे लगते हैं। इसके अलावा इस दिन नयी सब्जी यानी घर में हुई सब्जी (जैसे- लौकी, अरबी के पत्तों, कद्दू आदि) और पूड़ी सहित विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। हरेला के रूप में बोए गए अनाज के पत्तियों को लोग अपने रिश्तेदारों को आशीर्वाद के रूप में भेजते हैं।

हरेला पर्व को समर्पित मेरी कविता-

हरेला का पावन पर्व आया, हरियाली संग लाया,
धरती माँ का रूप निखरा, हम सबने प्रेम से गाया।

खेतों में हरियाली छायी, पक्षियों में नई उमंगें आयी,
फसलें झूम-झूम उठ आयी, मन में खुशियों छायी।

खेतों में बीज बोएं और सपने बोएं, उगें हरेले जैसे,
प्रकृति की गोद में खेलें, हम सभी अपनों के जैसे।

नन्हे पौधे अब उग आएं, दिलों में उत्सव मनाएँ,
वसुधा का आशीर्वाद पाएं, हरियाली को अपनाएँ।

इस प्रकृति का आशीष, हम पर सदा बना रहे।
हरेला के इस पर्व पर, जीवन सदा हरा-भरा रहे।

प्रकृति का सम्मान करें, पर्यावरण को बचाएं। 
हरेला का यह संदेश, हर दिल को समझाएं।

— दीप

दीप खिमुली

स्वतंत्र लेखक व पत्रकार दिल्ली