प्रबंधन
प्राकृतिक, संसाधन हों,
या हों, मानव ,अर्जित
प्रबंधन तो दोनों का, ही जरूरी है।
बिना नियोजन के
इस्तेमाल, किया यदि
होगा नुकसान,यह तो, बदसबूरी है
चादर के बाहर , जो पैर फैलाओगे
निश्चित है, बाद में, पछताओगे
संसाधनों के, बेहतर , प्रबंधन से
जीवन की राह, आसान बनाओगे
पेड़ पौधे हों,या हो,खनिज सम्पदा
सोच विचार, कर ही, खर्च कीजिए
यह है राष्ट्र की, अमूल धरोहर
अंधाधुंध, इसका न,दोहन कीजिए
हर देश ,के हैं, सीमित संसाधन
उनसे ही काम, चलाना पड़ेगा
आज ही सब, इस्तेमाल, किया जो
भावी पीढ़ी के हाथ, कुछ न लगेगा
वैसे, संसाधनों की, कमी, नही है
अकूत सम्पदा , यहां भरी पड़ी है
स्वार्थी लोगों के, जो हाथ में आई
फिर तो जानो, विपदा की घड़ी है।
बढ़ती जनसंख्या,एक बड़ी चुनौती
इससे कैसे भी, निपटना ही होगा
केवल कहने भर से,काम न चलेगा
सारा सुप्रबंधन, कुप्रबंधन बनेगा।
लोकतांत्रिक है, व्यवस्था हमारी
सुख सुविधा देने की, है जिम्मेदारी
संसाधन तो सदा, सीमित ही रहेंगे
तय हो इसमें, सबकी हिस्सेदारी
समय आ , गया है
कठोर, फैंसले, लीजिए
थोड़े समय, के लिए, वोट की
चिन्ता न, कीजिए ।
समान नागरिक संहिता
शीघ्रातिशीघ्र, लागू कर
प्राकृतिक, संसाधनों पर, दवाव
कुछ तो, कम कीजिए।।
धरती मां, आपका,उपकार मानेगी
बोझ कम होगा, और धन्य जानेगी
पर्यावरण में भी,सुधार आ जाएगा
बढ़ेगी खुशहाली, हर्ष छा जाएगा।
पर्यावरण, में भी
सुधार,आ जाएगा
बढ़ेगी, खुशहाली
और हर्ष, छा जाएगा।।
— नवल अग्रवाल