हरसिंगार
मानवता की झुठी पाठ पढ़ाने
कौन आया है अब मेरे द्वार
इन्सानियत की जब हो गई हत्या
बंद करो ये प्रेम का मायावी इजहार
हर चेहरे पे छुपा एक काला चेहरा
ईष्या द्वेष का फैला व्यापक व्यापार
मानव ही जब मानव का है दुश्मन
चेहरे पे क्यूं है सौंदर्य का प्रेम श्रृंगार
मैं भी कभी था पागल एक प्रेम पुजारी
गमले में लगाया था खुबसूरत हरसिंगार
बेली चमेली की जब हो रही थी हत्या
मौन खड़ा था ये जालिम निगोड़ी संसार
समाज ही जब पैदा करता हो दुश्मन
मूक बना ज़ग का हर शराफत किरदार
विनाश होना यहाँ तय है मेरे यारों
क्या करेगी जग का कोई सरकार
— उदय किशोर साह