आया बरसात का मौसम
छाने लगी है, कारी-कारी बदरी गगन,
देखो नगरी-नगरी, खुशीयों का हुआ आगमन,
आषाढ़ की है भीगी-भीगी सुंदर उतराई,
भीषण झुलसती, रूखी गर्मी से, सबने मुक्ति पाई ।
इंद्र देवता हुए हैं, वाह-वाह कितने मेहरबान,
आई सभी प्राणियों की, देखो जान में जान,
सावन ऋतु की, मनोरम छटा प्रकृति ने बिखराई,
मन मयूर नाच उठा, सबको दिल से है बधाई ।
हवा बही सुहानी, सबने सुखमय शीतलता पाई,
नन्ही-नन्ही अमृत बूंदों ने, धरती की प्यास बुझाई ,
सौंधी-सौंधी मिट्टी की खुशबू, तन-मन में है छाई,
प्रकृति ने किया अनुपम श्रंगार, ऋतु वर्षा पावन आई ।
खेतों में झूम रहा है, किसान फसल है लहराई,
देखो बच्चों की टोली ने, कागज की नाव बनाई,
टर-टर कर रहा मेंढक, पीहूं पीहूं पपीहे ने आवाज लगाई,
मधुर संगीत गूंज उठा प्रकृति में “आनंद” खुशियां छाई ।
— मोनिका डागा “आनंद”