अन्तरात्मा की शुद्धि
तन की मैल गंगा में धो आया
मन की मैल कब धोने जायेगा
अन्तरात्मा जब तेरा है रे पापी
तन धोने से कुछ ना हो पायेगा
पाप कर्म करने से जब ठोकर
जग में दर दर पे रो पछतायेगा
धोना है तो मन को धो ले
तन का मैल स्वंय धुल जायेगा
मन में तेरा जब काला बैठा है
पूजा पाठ से ना फल पायेगा
पहले अपना कर्म बदल ले
चरित्र खुद ब ख़ुद बदल जायेगा
मानव तन में जब जन्म लिया है
मानवता की पाठ पढ़ डालो रे
अन्त जग में भला तूँ दिखेगा
इन्सानियत की साख गढ़ डालो रे
कोई वकील मोहरिल वहाँ नहीं मिलेगा
जब यमपुरी के न्यायालय में जायेगा
धर्मराज व चित्रगुप्त के सामने
हाथ जोड़ दया खातिर तूँ गिड़गिड़ायेगा
— उदय किशोर साह