गीतिका/ग़ज़ल

कमी-सी है

इन दिनों जिंदगी थोड़ी ख़फ़ा-खफा- सी है
हालात दिल के कुछ जुदा -जुदा -सी है !

चांदनी रात में जो दरिया ठहरी नजर आती थी
आज उसमें उफान कुछ रवा-रवा -सी है !

चौंक कर रातों को कई बार जागते हैं हम
लगता है ख्वाब भी मुझसे कुछ बेजार -सी है !

रास्ते तो बहुत खूबसूरत -सी हो गई है
लेकिन कदमों की चाल कुछ थकी-थकी -सी है !

हर तरफ खुशियां -ही-खुशियां बिखरी है
बस अपनी जिंदगी में हंसी की थोड़ी कमी-सी है !

मुझको मालूम है कि ये दिन भी गुजर जाएंगे
न जाने क्यों दिल में सुकून की कमी-सी है !

— विभा कुमारी ‘नीरजा’

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P