कमी-सी है
इन दिनों जिंदगी थोड़ी ख़फ़ा-खफा- सी है
हालात दिल के कुछ जुदा -जुदा -सी है !
चांदनी रात में जो दरिया ठहरी नजर आती थी
आज उसमें उफान कुछ रवा-रवा -सी है !
चौंक कर रातों को कई बार जागते हैं हम
लगता है ख्वाब भी मुझसे कुछ बेजार -सी है !
रास्ते तो बहुत खूबसूरत -सी हो गई है
लेकिन कदमों की चाल कुछ थकी-थकी -सी है !
हर तरफ खुशियां -ही-खुशियां बिखरी है
बस अपनी जिंदगी में हंसी की थोड़ी कमी-सी है !
मुझको मालूम है कि ये दिन भी गुजर जाएंगे
न जाने क्यों दिल में सुकून की कमी-सी है !
— विभा कुमारी ‘नीरजा’