ग़ज़ल
मेरे दिल का गम तुम कैसे जान पाओगे
हँसते हुए चेहरे के पीछे का दर्द कब समझ पाओगे
क्या क्या नहीं सहा इस दिल ने रंजोगम
मेरी तकदीर का फलसफा कैसे समझ पाओगे
गुजर गई जो शबेरात यूँ ही आँखों में
डूबती हुई शाम का सफर कैसे समझ पाओगे
यूँ जिंदा तो सभी रहते हैं इस जहान में
जीवन के हर पल का राज कैसे समझ पाओगे
बंदगी तो नहीं जानती ये धड़कन की रागिनी
मेरी रूह का साज तुम कैसे समझ पाओगे
बिखरी और संवरी है कई टुकड़ों में जिंदगी
मेरे अश्कों का राज तुम कैसे समझ पाओगे
आँखों में दर्द और चेहरे पर मुस्कान
यही तो है जिंदगी का छल तुम कैसे समझ पाओगे
— वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़