संवरिया आजा रे
घिर आई कारी बदरिया।
अब तो आजा संवरिया।
गरज गरज बादल डरवावे,
धड़के जियरा चैन न पावे,
चमकन लागि बिजुरिया।
अब तो आजा संवरियां।
राह निहारत बीती रतियां,
दरवाजे पे लागी अंखिया,
दुखन लागी नज़रिया ।
अब तो आजा संवरिया।
सावन भादों नैनन बरसे,
तुम्हरी याद में जियरा तरसे,
सूनी लागे सेजरिया।
अब तो आजा संवरिया।
काजल बिंदीया मन न सुहावे,
दरपन भी अब रास न आवे,
भावे कछु न बजरिया।
अब तो आजा संवरिया।
घिर आई कारी बदरिया।
अब तो आजा संवरिया।
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”