गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मेरे दर्द की तुम दवा बन सको तो
आतप में शीतल हवा बन सको तो
मैं निरखूं मैं पूजूं औ पलकें बिछाऊं
अगर मेरे प्रिय देवता बन सको तो
ये सविनय अवज्ञा मैं रख दूं बगल में
जो मेरे लिए तुम खुदा बन सको तो
मुझे छू के संवेदना भीग जाए
हृदय की मेरी वेदना बन सको तो
गेहूं की बाली औ आटे की खुशबू से
घर महमहाये, तवा बन सको तो
मेरा जन्म लेना सफल सार्थक हो
मनुजता का गर आईना बन सको तो

— डॉ. ओम निश्चल