कविता

जीवन की गति

साँसें थक कर अब चूर हुई
शक्ति तन से भी दूर हुई
मन ने क्या ख्वाब सजाये थे
पर कोई काम ना आये थे

सूरज अस्ताचल में छुप जाता है
प्रकाश अंधेरे में गुम हो जाता है
जीवन की गति अति निराली
सुख दुःख की छाया है आली

चाँद सितारे जग में सब रह जाते
हाड़ मांस का तन एक दिन मिट जाते
फिर क्यूँ हम करते यहाँ पे अभिमान
रे मानव मत कर तन पे कोई गुमान

ना तुँ रहेगा जग में ना मैं ही रहूँगां
ना तुम कुछ् कहोगे ना मैं ही कहूँगां
आना जाना जग की है सब माया
बन्द करो ये हनक की झूठी साया

प्रेम की खेती कर जीतो आत्मसम्मान
गुरू पंडित जन्मदाता का हो मान
कर्म की गुँज सदा ही तेरा रहेगा
धन दौलत की संसार ना दिखेगा

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088