झूला झूले शिव-शिवा
घिर घिर बदरी छाई, अंबर से बरसे बूंदों की फुहार,
मन भावन ऋतु बरखा लाई, सावन में अमृत की बहार,
“आनंद” मग्न हो प्रकृति गाएं, झूम-झूम राग मल्हार,
माता पार्वती झूला झूले, संग है शंकर भोले सरकार ।
शिव के सोहे शशि शेखर, गल सर्पण की माला,
आक, धतूरा चढ़े संग, घोटाय भांग का प्याला,
नीलकंठ, जटा जूट, महायोगी भस्म रमाने वाला,
नटराज, त्रिशूल धारी, भोलेनाथ नंदूगण वाला ।
मां पार्वती ने तप से पाया, शिव शंकर को भरतार,
शैल सुता, महामाई गिरिजा, का भोले ही है श्रृंगार,
पूजन शिव-शक्ति का, आस्था से करता सारा संसार,
आदि शक्ति, गणपति महतारी, जग की पालनहार ।
अद्भुत अनुपम दृश्य मनोहर, करते सब नमस्कार,
देवी-देवता पुष्प बरसाए, गाएं स्तुति व मंगलाचार,
ढोल, दुंदुभी, डमरू, शंख, बजाएं करताल और सितार,
मां-महादेव की महिमा, सम्पूर्ण जगत में है अपरंपार ।
पवित्र सावन मास में कर लो तुम यह पावन अराधना,
भव बंधनों से मुक्ति पालो यह है दिव्य अनुपम साधना,
भगवती अंबा जी-भोलेनाथ से जो भक्त करता प्रार्थना,
पूरी होती हर अरदास अगर सच्ची हो उसकी भावना ।
— मोनिका डागा “आनंद”