कविता

हमसफर

दो अंजाने चल पड़ते हैं एक साथहमसफ़र बन जीवन की यात्रा मेंकुछ पाकर, कुछ खोकर तो कुछ सहकर, कुछ लड़करकुछ समझौते कर आगे बढ़ते जाते हैं।लगभग हर दिन अनगिनत तकरार करएक दूसरे से दूर होने की धमकियां देकरऔर फिर मिलकर उसी राह पर आगे बढ़ जाते हैं,रात गई बात गई की तर्ज परजैसे कुछ हुआ ही न हो।जीवन का युद्ध साथ लड़तेघर परिवार की साझा जिम्मेदारी निभाते,बच्चों के भविष्य की चिंता मेंखुद की परेशानियों को ताक पर रख करएक दूजे का संबल बनते, हौसला अफजाई करते,सब कुछ ठीक हो जाएगा की भविष्यवाणी करते।चलते रहते हैं अपने हमसफर के साथसात जन्मों का बंधन मान।हमसफ़र के साथ होने का गुमानजैसे लगता है बड़ा आसान, जो वास्तव में होता नहींपर विश्वास होता है खुद से ज्यादा अपने हमसफर पर,और यही विश्वास मजबूत करता हैहर हमसफ़र की सहज यात्राऔर गर्व, कुंठा, दुख, सुख अच्छा बुरा जैसा भीहमसफ़र की ताकत जीवन की यात्रा मेंमजबूत दीवार सरीखा लगता है,तमाम अंर्तविरोधों के बावजूद अगले जन्म मेंबस आज के इसी हमसफ़र का साथ होने कामन में भाव हिलोरें मारता है,हर हमसफ़र का एक इतिहास बनता हैक्योंकि हमसफ़र ही एक दूजे के लिएसबसे खासमखास होता है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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