कविता – भाईचारा की फसल उपजायें
हे मानव जग में तुँ है महान
जग में मत बन तूँ नादान
प्रेम बीज धरातल पे गिराना
प्रेम मोहब्बत की फसल उपजाना
सूरज पूरब से जब जब है आता
प्यार मोहब्बत की संदेशा लाता
चन्दा भी हमें नित्य है समझाता
भाई चारे की गीत रोज है गाता
ये पूरवाई तन मन को छू कर जाती
अपनी खुशबू से फिजां को महकाती
विश्व बिरादरी की बात घर घर लाती
प्रेम से हर पल नई ऊर्जा दे कर जाती
दूर दूर तक फैला हैं सागर का ऑंचल
गीत प्यार की गाता नभ का बादल
सदियों से नदिया है कल कल गुनगुनाती
प्यार की रंग जीवन में है भर चली जाती
आओ सब मिल कर इन्हें हम अपनायें
एक दूजै के सदैव काम हम आयें
प्यारा सा एक संसार नई हम बसायें
धरा पे भाई चारा की फसल उपजायें
— उदय किशोर साह