परिचय
चलिए एक छोटा सा परिचय हो जाये….
मैं उदासियों के शहर में ख्वाब ढूंढता हूं
पीठ में गड़े खंजरों केजवाब ढूंढ़ता हूं
दबी-दबी आवाजों केसाज ढूंढता हूं
चेहरे के पीछे छिपे राज ढूंढता हूं
रिश्तों के भंवर में नाव ढूंढता हूं
अपनों के ही दिएघाव ढूंढता हूं
क्या कहूं की मैंकिया गया
अनाथ-सासपनों में रातों कोघर में
अपने पांव ढूंढता हूं ।
सिसकियां भरते हुए मां की छांव ढूंढता हूं
अब मैंबदल गया हूं
उठा नहीं पाता खुद को खो देता हूं
पता नहीं घर की याद में कहीं पर भी रो देता हूं
— प्रवीण माटी