कविता

पहले जैसा बन सकते हो

जरा सा लाओ तो
अपने अंदर आत्मविश्वास,
करना नहीं पड़ेगा कुछ खास,
बहता है तो बह जाने दो
नैनों से उमड़ता घुमड़ता बहता नीर
पर न रहने दो उदास,
लगाकर रखो थोड़ा सा आस,
स्वारथ भूल करो नीतियों पर विश्वास,
एक होते ही नहीं रहोगे उदास,
गले मिलो गिले शिकवे मिटाओ,
दिलों की दूरियां कम करो
एक दूजे के पास आओ,
प्रारंभ में चले थे जिस कारवां को लेकर,
महामानव के पीछे चले थे
अपना तन मन धन सब देकर,
इस वक्त को देखो इसके तकाजे को समझो,
एक मूलमंत्र रहे कि वह
हम रहे ना रहे मिशनरी प्रयास न कम हो,
छोटे छोटे दिए ढिबरी जलाकर चलने वालों,
इन सबके बदले क्या
एक बड़ा मशाल नहीं जला सकते हो?
कठिन वक्त में अच्छा सोचने का समय है।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554