मुक्तक/दोहा

मजे-मजे में धन बहुत, धोखे से हैं ठाट

चिंता कल की ना करो, खोज न कोई सार।
मुस्काकर तू प्रेम से, आगे बढ़ ले यार।।
जिसको शत्रू समझता, कल बन जाए मित्र।
जिनको प्रेमी समझता, खींचे केवल चित्र।।
सैल्फी तो नित लेत हैं, समझ न पाए सैल्फ।
मदद सभी से माँगते, नहीं किसी की हैल्प।।
प्रेम सभी से चाहते, करें प्रेम की लूट।
ऐसिड फेंकें प्रेम से, ठोकर मारें बूट।।
बढ़ी प्रेम की माँग है, आओ बेचे हाट।
मजे-मजे में धन बहुत, धोखे से हैं ठाट।।
अर्थ तंत्र है बढ़ रहा, खुले प्रेम बाजार।
जिस पर जितना धन दिखे, उतनी आँखें चार।।
कर शादी की बात ना, बदल गए हालात।
दुल्हन बुनती जाल है, दूल्हे को है लात।।
मन से मन ना मिलत हैं, मिलते हैं बस गात।
प्रेम धनी की लूट हित, कानूनों की बात।।
लूट हेतु, दुल्हन बनीं, प्रेम नाम है लूट।
प्रेम बना षड्यंत्र है, कानूनी है छूट।।
शादी कर वारिस बनें, देती हैं फिर मार।
प्रेम और अपराध का, ग्लोबल है बाजार।।
प्रेम बिके बाजार में, मोबाइल की धूम।
कीमत सबको चाहिए, पल में लेते चूम।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)