प्रत्युपकार
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“यार रमेश, तुम डॉक्टर साहब के यहाँ एक कंपाउंडर हो, सर्वेंट नहीं, फिर भी मैं देखता हूँ कि तुम उनके छोटे-मोटे लगभग सभी काम ऐसे ही कर देते हो।” संतोष ने कहा।
“देख भाई, यह सही है कि मैं एक कंपाउंडर हूँ, पर डॉक्टर साहब के कई पर्सनल काम भी ऐसे ही इसलिए कर देता हूंँ क्योंकि वे भी मेरे बहुत से पर्सनल काम ऐसे ही कर देते हैं।” रमेश ने जवाब दिया।
“डॉक्टर साहब और तुम्हारे पर्सनल काम ? क्या बक रहा है तू ? एड़ा समझ रखा है क्या मुझे ?” संतोष झुंझलाते हुए बोला।
“हांँ भाई, एकदम सही कह रहा हूंँ तुझे। डॉक्टर साहब मेरे और मेरे बीबी-बच्चों का ही नहीं, मेरे माता-पिता, सास-ससुर, भाई-बहन और उनके परिजनों का भी मुफ्त में ही इलाज करते हैं। यही नहीं, जो इलाज उनसे नहीं होता, वे अपने जान-पहचान के डॉक्टर से कहकर करवा देते हैं। अब बताओ कि क्या उनके छोटे-मोटे काम कर मैं कोई ग़लती करता हूँ ?” रमेश ने पूछा।
“नहीं यार, तुम बहुत किस्मत वाले हो जो तुम्हें इतने अच्छे आदमी के साथ काम करने का मौका मिला है।” संतोष ने रमेश की पीठ थपथपाते हुए कहा।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़