कविता

यह दिल मांगे मोर

चीर कर सर्द हवाओं का सीना
पार करके बर्फ से ढके पहाड़
भाग गया दुश्मन डर के मारे
सुन कर भारत के वीरों की दहाड़

बर्फ की चट्टानें कठिन चढ़ाई
रोक न सकी वीर जवानों की राह
भारत माता का साया था सर पर
करना था अब दुश्मन को तबाह

वह टाइगर हिल और मश्कोह घाटी
खाली करवाने में लगा दिया था पूरा जोर
आज भी सुनों तो आवाजें आती है
कहती हैं यह दिल मांगे मोर

एक एक ने कईयों को मारा
भारत माता की जय था केवल नारा
आखिरी शब्द थे उनके जो लौट न पाए
सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा

कारगिल युद्ध नहीं भूलेगा देश
नहीं भूलेगा अपने वीरों की कुर्बानी
याद बहुत आएंगे जो लौट के न आये
लुटा दी जिन्होंने देश पर अपनी जवानी

घर पर राह देख रहे उनकी
साया उनका हर तरफ नज़र है आता
कैसे समझाए अब उन्हें कोई
कि जो चला गया उसको कोई बुला नहीं पाता

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र