हिसाब-किताब
हिसाब-किताब
शादी के बाद पहली बार मायके आई रश्मि से उसकी दादी ने पूछा, “बेटा इस महिने सेलरी के पैसे दामाद जी ने तुम्हारे हाथ में दी कि नहीं ?”
रश्मि ने कहा, “नहीं दादी ।”
दादी ने आश्चर्य से पूछा, “नहीं… ? तुम्हें नहीं दी तो फिर किसे दी ?”
रश्मि ने कहा, “पापा जी को ।”
दादी ने कहा, “अच्छा, मतलब अब तुम्हें अपनी जरुरत के लिए अपने ससुर जी के सामने हाथ फैलाने पड़ेंगे।”
रश्मि ने कहा, “ससुर जी अपने पास पैसे रखते ही नहीं। उन्होंने तो तुरंत वे पैसे मम्मी जी को दे दिए।”
दादी ने कहा, “मतलब, सारे पैसे अब तुम्हारी सास के पास रहेंगे ?”
रश्मि ने कहा, “नहीं दादी, सारे पैसे मेरे ही पास रहेंगे ।
दादी ने आश्चर्य से पूछा, “सो कैसे ?”
रश्मि ने बताया, “क्योंकि मेरी सास ने इनकी और पापा जी की सेलरी के सारे पैसे यह कहकर मुझे दे दिए कि अब से घर का सारा हिसाब-किताब तुम्हें ही रखना होगा।”
दादी ने रश्मि के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “वाह ! क्या खूब परिवार है तुम्हारा। सब एक से बढ़कर एक। बेटा, मुझे पूरा विश्वास है कि तुम उनकी उम्मीदों पर खरी उतरोगी।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़