ग़ज़ल
इक दिन सूख जाएंगे ये हरियाते शजर यारों।
उम्र भर कौन रहता है बहारों में बशर यारों ।।
यह दुनिया है सराय सी यहां इक रात का डेरा।
यहां पे कौन करता है सदियों तक बसर यारों।।
अपनी झोलियों के फूल जग को बांट कर देखो।
तुम्हारी जिंदगी खुशबू से होगी तर- ब- तर यारों ।।
कभी खुशियों की बाहों में कभी गम की निगाहों में।
यूं ही गुजर जाता है यह जीवन का सफर यारों ।।
निगाहों से जो दिखती है यहां हर चीज फानी है।
कुदरत ने बनाया है यह ऐसा इक नगर यारों ।।
यूं ही मत बनाया कर बशर यहां रेत के टीले।
खाली ही गए सारे सिकंदर और जफर यारों ।।
हर एक शख्स को देता है उसके हिस्से का वो ही।
हर एक शय पे रहती है सदा उसकी नजर यारों।।
यहां कुछ भी नहीं होता बिना उसकी इनायत के।
महकता वो ही रखेगा तुम्हारा घर व दर यारों ।।
मोहब्बत करके देखो और मुहब्बत बांट कर देखो।
कितनी खूबसूरत है मोहब्बत की डगर यारों।।
जो अपने आप को इक बार उसको सौंप देता है ।
कभी वो होने नहीं देता है उस को दर- ब -दर यारों।।
— अशोक दर्द