प्रेम गान ही गाती हो
हम चाहते हैं तुम्हें कितना, समझ नहीं तुम पाती हो।
प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं, प्रेम गान ही गाती हो।।
प्रेम नहीं कुछ पाना होता।
प्रेम नहीं हर्जाना होता।
प्रेमी तो है समर्पण करता,
प्रेम में अहं मिट जाना होता।
प्रेम नाम स्वार्थ से पूरित, वासना से मदमाती हो।
प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं, प्रेम गान ही गाती हो।।
प्रेम नहीं वश में करता है।
प्रेम नहीं सुख को हरता है।
प्रेम है कानून से ऊपर,
माँग नहीं, अर्पण करता है।
प्रेम किसी को नहीं बाँधता, जाओ जहाँ तुम जाती हो।
प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं, प्रेम गान ही गाती हो।।
प्रेम कैसा? जो ऐसिड फेंके।
प्रेम नहीं, कानून को देखे।
आधिपत्य या मार डालना,
कैसे हैं? ये प्रेम के लेखे।
लुटने को तैयार खड़े हम, लुटेरी, नहीं हमारी थाती हो।
प्रेम का अर्थ तुम समझ न पाईं, प्रेम गान ही गाती हो।।