मत कर धन पे अभिमान
पाप की जो करी है कमाई तेरे काम ना अयेगी
बेईमानी से अर्जित आई पाप के घर ही जायेगी
मत कर तुम इस धन पे कभी मूरख अभिमान
जैसा कर्म किया है वैसा ही फल पायेगा इन्सान
कोर्ट कचहरी के चक्कर में लुट जायेगी है विधान
वैद्य चोर के घर जाकर ये करेगी उनका ही कल्याण
मत कर तुम इस धन पे कभी मूरख झूठा अभिमान
जैसे कर्म किया है वैसा ही फल पायेगा रे इन्सान
गरीबों मजबूरों की आँसू तुम्हें रूलायेगी रे अनजान
भूखे तड़पते मासुमों की आह लग जायेगी रे नादान
मत कर तुम इस धन पे कभी मूरख झूठा अभिमान
जैसा कर्म किया है वैसा ही फल पायेगा रे इन्सान
जैसा अन्न औलाद को खिलाया है कमा कर जीवन में
वैसा ही मन मष्तिष्क उपजेगा समझ ले फेरा रे जवान
मत कर तुम इस धन पे कभी मूरख झूठा अभिमान
जैसा कर्म किया है वैसा ही फल पायेगा रे इन्सान
धरी रह जायेगी जीवन भर की सारी अवैध कमाई
जिस दिन बुला लेगें वापस तुम्हें परम पिता भगवान
मत कर तुम इस धन पे कभी मूरख झूठा अभिमान
जैसा कर्म किया है वैसा ही फल पायेगा रे इन्सान
— उदय किशोर साह