काली घटा
नभ पे छाई बदरा काली काली
घटा घनघोर ले आई मवाली
दिन उजला रजनी में हुई तब्दील
खुशी से झूम उठा मोरनी की दिल
उमड़ घुमड़ वरसो पानी अय बदरा
रिमझिम रिमझिम बुंदो की फुहरा
दादुर गाये गीत बजा संगीत मल्हार
चारों ओर छाई तिलोतमा की बहार
कृषक करता था तेरा ही इन्तजार
वरस रहा ले आई सावन की बहार
चारों ओर छाई है गजब हरियाली
खेतों में मनेगी नित्य अब दीवाली
ले चल नैया ओ मल्लाह गाँव जवार
बुला रही है जहाँ नदियों . की पुकार
फिजां की रंग हुई नशे में मतवाली
वन जंगल में जहाँ छाई डाली डाली
खेत खलिहान ने किया सोलह श्रृंगार
सज गई दुल्हन आज देखो बहियार
पहाड़ों पे छाई तरोताजा मुकुट हरियाली
पुरवईया संग बहै पहाड़ों सेनदी नाली
— उदय किशोर साह