कविता

खुद से सुधर जा

उनकी तो पूरी की पूरी तैयारी है,
मानाकि तलवार दोधारी है,
सुधार का आंदोलन पूरे देश में जारी है,
कल भी हमारी बारी थी
आज भी हमारी बारी है,
उनकी संस्कृति के हिसाब से
हमारा सुधरना जरूरी है,
एड़ियों में मुकम्मल दबे होने तक
उनकी सोच अधूरी है,
पूरे देश में आये दिन हमें कूटा जाता है,
हमें हमारी औकात दिखाने
आये दिन हमारी आबरू लूटा जाता है,
जहां जाने की तुम्हें जरूरत नहीं
वहां भी चले जाते हो,
तुम्हारी आस्था तुम्हारे जेब में रहता
लात घूंसे रह रह चाव से खाते हो,
क्या नहीं रही है चाह तुम्हें
अपनी मान और मर्यादा का,
पढ़ लिख क्यों नहीं ढूंढ रहे इलाज
टोना जादू भूत प्रेत बाधा का,
कितनों आये और मर खप गए
तुम्हें जरा सी बात समझाने में,
आस्था आसमानी छोड़े गए हैं
तुम सदा से रहे हो उनके निशाने में,
वक्त हमेशा चाह रहा है
जल्दी तुम खुद से सुधर जाओ,
पढ़ो लिखो और संगठित रहो
राह चलो शासन सत्ता लाने में,
क्यों भूले हो कि औलाद हो तुम
कबीर,पेरियार,भीम और फुले के,
क्यों पड़े हो पीछे बतलाओ
पाखंड और मनुवादी झूले के,
पढ़ो पढ़ाओ आगे जाओ
अंधविश्वासों को दूर भगाओ,
सत्य अहिंसा राह बुद्ध का,
हिन्दुस्तां को संवैधानिक भारत बनाओ।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554