ग़ज़ल
बड़े ही प्यार से तूने, दिया पैगाम था मुझको।
नहीं था बेवफ़ा मैं तो, किया बदनाम था मुझको।।
बुलाया था इशारे से, खड़ा मैं सोचता देखो।
गली तेरी चला आया, नहीं कुछ काम था मुझको।।
बजायी तान थी प्यारी, उसी में खो गया मैं तो।
दिया तूने तभी सुन ले, नशे का जाम था मुझको।
जिया ज़िंदादिली से मैं, बड़ी शोहरत पाकर ही।
फँसा कर इश्क़ में तूने, किया नाकाम था मुझको।।
नशे ही अब नशे की है, पड़ी आदत तुम्हीं से ही।
मुड़े जो पाँव मदिरालय, बड़ा आराम था मुझको।
बड़ी हसरत रही मन में, मिलेगा इश्क़ सच्चा ही।
जाम पर जाम देकर ही, किया नीलाम था मुझको।।
चले हैं दाँव झूठे ही, हमें बदनाम कर देखो।
वफ़ाई थी कहाँ तुझमें, दिया इल्ज़ाम था मुझको।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’