लघुकथा

बचपन

कितना अच्छा लगता है जब किसी गली में बच्चों की आवाज़ सुनाई देती है कान में जैसे किसी ने मिसरी सी खोल दी है। जैसे ढेर सारी कोयल एक साथ बोल रही हो। इसी सोच खोए हुए रमेश को टोकते हुए रामनाथ काका ने कहा।
“अरे रमेश देखना गली में वानर सेना आ गयी है। कहीं हमारे घर की खिड़की का शीशा न तोड़ दे। उन लोगों का कोई भरोसा थोड़ी ही रहता है। शैतान शैतान है जाने कहां से आ जाते है उनके माता पिता नहीं रोकते होगे। इतने अच्छे लगते है तो अपने घरों के शीशे तुड़वाए। तब पता चले उनको।कि किन शैतानों को जन्म दिया है।” रामनाथ चाचा ने चिढ़ते हुए कहा।
रमेश बोला- “अरे चाचा उनका बचपन है वो शरारत नहीं करेंगे तो क्या हम करेंगे। कभी कभार उनकी गेंदों से शीशा टूट जाता है। तो उस पर इतना
आसमान सिर पर उठाना ठीक नहीं है।बच्चे हैं बच्चे हैं।”
रामनाथ चाचा- “तू तो उनका वकील हो जा। इसी बहाने चार पैसे घर लाया करेगा।उनका केश लड़ना। और मोटी फीस लेना।”
“अरे फीस क्यो लूंगा उन मासूम फरिश्तों से। बचपन का सम्मान करो चाचा।ये फिर लौटकर नहीं आता है अगर चला जाएं तो।”

— अभिषेक जैन

अभिषेक जैन

माता का नाम. श्रीमति समता जैन पिता का नाम.राजेश जैन शिक्षा. बीए फाइनल व्यवसाय. दुकानदार पथारिया, दमोह, मध्यप्रदेश