लघुकथा

लघु कथा – निर्णय

अद्भुत नजारा था. बेटी अटैची सहित पिता के द्वार पर खड़ी थी. पिता बिना बताए, अचानक ससुराल से नाराज होकर चली आई बेटी को मायके के द्वार से भीतर घुसने न दे रहे थे. माता भी पति के पक्ष में पुत्री का पुरजोर विरोध कर रही थी. माता, पुत्री के प्रति रोष जाहिर कर रही थी. बेटी की याचना- “अच्छा घर में तो आने दीजिए, मेरी बात तो सुन लीजिए.” बेअसर थी. पिता का एकमात्र निर्णय- “जिन पैरों से आई हो, उन्हीं पैरों से लौट जाओ.”

द्वार पर खड़े पिता, पीछे माता और द्वार के बाहर खड़ी बेटी की करुण याचना और पिता के क्रोध ने उग्र रूप धारण कर पास पड़ोसियों को स्वतः ही आमंत्रित कर लिया था. पिता बेटी से कह रहे थे “मैं अपने दामाद और उनके परिवार वालों को क्या मुँह दिखाऊँगा? तेरी अधीरता, असहनशील प्रवृत्ति ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा.”

तुरंत समधी जी को फोन लगाया, बेटी की नादानी हेतु क्षमा माँगी. उधर से प्रत्युत्तर में भावुक संदेश मिला- “अरे साहब बच्ची ही है, आपस में कोई खटर-पटर हो गई है. कोई नहीं, मैंने अपने सुपुत्र को उसे लाने के लिए रवाना कर दिया है. पहुँचता ही होगा. हमारी बहू हमारे घर की लक्ष्मी है. पिता ने तुरंत दामाद को फोन लगाया और पूछा, “बेटा, कहाँ हो?” दामाद का सहमा सा उत्तर था- “बस, बाबूजी घर के नुक्कड़ तक पहुंच गया हूँ. पिता ने बेटी को पड़ोसी के साथ नुक्कड़ तक पहुँचवा, सीधे पति के साथ घर जाने का आदेश सुनाया.

पहली बार सिर उठाए अहम रूपी फन दोनों तरफ से कुचले जा चुके थे. पड़ोसी ने हँसकर दामाद की कुशल क्षेम पूछी, उसकी पत्नी को उसके सुपुर्द किया, थोड़ा हंसी मजाक वाला वातावरण बनाया तथा भातृत्व धर्म निभाकर लौट लिया. रास्ते भर उन दोनों के मध्य मौन पसरा रहा.
सास ससुर ने घर पहुँचते ही प्यार से बहू को अंदर लेते हुए झिड़की दी “अरे बहू, छोटी मोटी बातें यहीं सुलझा लेते, मम्मी पापा को कष्ट नहीं देते बेटा.”
बहू सकुचाकर अंदर जाने को थी, तभी पिता ने पुत्र को आवाज दी “क्यों भाई, अभी भी नाराज ही है क्या? बच्ची, अपना घर छोड़ हमारे घर आई है. उसकी इच्छाओं, उसके मान सम्मान का आदर करना तुम्हारा धर्म है. तुम्हारी औकात से ऊपर की माँग वैसे तो हमारी बहू करेगी नहीं, यदि कर भी दे तो अभी हम उसे पूरा करने के लिए जीवित हैं.”
फिर बहू की तरफ मुखातिब हुए- “बहू, अगर यह नालायक तेरी बात न समझ पाए तो बेटा एक बार हमें जरूर बता दिया कर. आने जाने की जहमत उठानी नहीं पड़ेगी. ” कह कर हँस पड़े.
अपने कक्ष में पहुँच दोनों थोड़ी देर बाद एक दूसरे से क्षमा माँग रहे थे और गृहस्थी की गाड़ी फिर पटरी पर रफ्तार से दौड़ने लगी थी.

— बृजबाला दौलतानी