कविता

सावन

हरियाला सावन आया रे
बरखा को साथ लाया रे
हरियाला सावन आया

सखियाँ पीहर को आईं
मोहे बुलाए ना भौजाई
मन है जाने को तरसाया

झूले डले अम्बवा डारी
मन मसोसे महतारी
बिटिया को ना बुलाया

भैया तो रहे परदेस
भाभी जाए जब स्वदेश
अम्मा भेज दीजो धाया

धाया संग नैहर आई
देखो कैसी खुशी छाई
सखियों संग मल्हार गाया

अम्मा भी है हर्षानी
जागी उन में भी जवानी
खूब मलाई घेवर खाया

बर्तन भाँडे ना मैं माँजूं
ना ही कपड़े में धोऊं
सावन का नशा छाया

— बृज बाला दौलतानी