कविता

मुफ्त का ज्ञान

ऐसा भी कहीं होता है क्या
और आपने भी देखा सुना है क्या?
जो इन दिनों खूब देखा सुना जा रहा है,
सोशल मीडिया पर समझदार बुद्धिजीवियों का रेला
जैसे अचानक ही सड़कों पर आ गिरा है।
आत्ममुग्धता में ज्ञानी बनने की जैसे होड़ मची है
जिसे पीड़ित की पीड़ा जानने की फुर्सत भी नहीं है
वे सब मुफ्त का ज्ञान सोशल मीडिया पर दे रहे हैं।
जिन्हें अ से ज्ञ तक की वर्णमाला का ज्ञान भी नहीं है
वे ही गुरु जी को पहाड़ा पढ़ा रहे
कामचोर, आलसी, घमंडी, सरकारी दामाद
और जानें क्या क्या कह रहे हैं।
शायद किसी शिक्षक से उन्हें शिक्षा नहीं मिली
या वे सब पढ़े लिखे ही धरती पर आ गिरे हैं।
हाँ! यह और बात है कि खुद में झांकने की
जिसमें हिम्मत नहीं यारों
वे सब आज स्वयं भू सलाहकार बन रहे हैं,
अपने गिरेबां में झांकने से जो काँप रहे हैं
वे सब ही आज गुरु जी को आत्मज्ञान दे रहे हैं।
जिसे मेरी बीमारी की कुछ खबर ही नहीं
वे ही आज हमको डाक्टर का पता दे रहे हैं।
गजब है अपने समाज के ठेकेदारों की लीला
जिसे पता ही नहीं वो ये क्या कर रहे हैं,
उनकी नजर में वे ही कलयुग के हरिश्चंद्र हैं,
उनके सिवा सारे सत्यवादी छुट्टी मना रहे हैं
और उनकी जिम्मेदारी उठाए ये सब बेचारे
सोशल मीडिया पर त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहे हैं,
और ये सब स्वयंभू भूल रहे हैं
कि मुफ्त का ज्ञान लुटाने के फेर में
वे सब अपनी खुद ही भद्द पिटवा रहे हैं,
हे प्रभु! क्या यही सब देखने के लिए
हम धरती पर विचरण कर रहे हैं
या और कुछ देखना है मेरे परमपिता
जो हम देख ही नहीं पा रहे हैं
या देखकर भी देखने साहस नहीं कर पा रहे हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921