कविता

मौन मंथन

जब संघर्षों से भरा हो जीवन,
तितिक्षा क्षीण हो रही हो अंतर्मन,
कट न पा रहा हो एक-एक क्षण,
व्याकुल अधीर हो रहा हो तन-मन ।

बहा रहे हो अविरल अश्रु नयन,
कष्टकारी असहनीय वेदना व चुभन,
जीवन में सता रहा हो अधूरापन,
असंतुलन कर रहा जीवन को खिन्न ।

खामोशी, भय छीन रहा सुकून व चैन,
बैठा जब अप्रसन्न लगे दु:खदाई दिन रैन,
तरस रहे हो “आनंद” सुख पाने को नैन,
परेशानी कर रही हो अधिक बेचैन ।

यही परीक्षा की घड़ी है कर आत्म दर्शन,
स्वीकार कर इसे, त्याग दुःख छोड़ पतन,
कर पुनः आत्म अवलोकन व मौन मंथन,
छोड़ दे अविश्वास, रुदन, भय व क्रंदन ।

शांत कर चित् पुनः कर प्रयास समायोजन,
खोज दिव्य प्रकाश, भाल तिलक कर चंदन,
सकारात्मक विचारधारा से कर दुखों का दमन,
धन्यवाद कर प्रभु का चिंतन, स्मरण, वंदन ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु